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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

मासूम की पुकार

मासूम की पुकार

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सपनें में भी हिल गयी माँ

सुन बेटी की चित्कार को

उठो ना माँ पूछो तो सही

उस भेड़िये की अंतरात्मा को

क्या भूल सकता है भूखा वो

उस काली अंधेरी रात को

मेरे गूँगे से चित्कार को,

एक बेबस गुड़िया लाचार को..


मैं क्रुर पंजो से निबट रही थी

मैं जूझ रही थी नाखूनों की चुभन से उठते शूल से,

क्या इत्तू सी भी यातना मेरी नज़र ना आयी

उस ज़ालिम को,

उठो ना माँ देखो तो सही ये खून से लथपथ गुप्तांग मेरे,

माँ दवा लगा दो दुख रहा है

टूट रहा हर एक अंग..


माँ पूछो ना उस अंकल को काँपती नहीं क्या रुह उसकी,

रात के सन्नाटे में कभी

याद आती है जब-जब मेरी बेबसी,

क्या चैन की नींद वो सो सकते है

नोचकर एक मासूम सी कली

क्या बंद आँखों के भीतर कभी ,

झांकता नहीं चेहरा मेरा

हाथ फैलाकर इंसाफ मांगता, आँसूओं से लथपथ...


माँ पूछो ना उस पापी से क्या मिला मेरी बलि चढ़ाकर

चंद पलों की हवस बूझाकर रोंद दिया मेरे वजूद को,

बस इतना सा पूछ लो ना माँ खून का रंग तो धो लिया,

रुह पे पड़े मेरे आँसूओं के बोझ को हटा पाएगा वो...

सपनें में भी हिल गई माँ बेटी की सुन फ़रियाद को॥


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