सुना तुमने
सुना तुमने
आह निकली है तो बहुत दूर तक जाएगी
रख दिया मैंने उसको हवा के परों पर।
मेरे मन का अँधेरा छँटने लगा
दिखाई देता है मुझे दूर दूर तक।
समझ में आने लगा झूठ सच
दिखने लगे नक़ाबों के अंदर चेहरे।
नहीं खाने दूँगी किसी को अपने ऊपर तरस
हर तरह से सक्षम हूँ
क्यों कोई खाये तरस ?
झूठी सहानुभूति दिखाए !
रात के अंधेरों को चीर कर सूरज़
अपनी पूरे तेज़ के साथ चमक रहा
मैं गाती हूँ ढेर सारे नगमें, बिना आवाज़ के
मैं ख़ुश हूँ बहुत हँसती हूँ, बिना खिलखिलाहट के
मुस्कान सजती है मेरे चेहरे पर हरदम
किसी के कुछ भी कहने से
मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मैं किसी से नफ़रत नहीं करती प्यार करती हूँ
बेहद वाला प्यार मुझे अपने बच्चों से है
मैं समझ गई अपने आप को
ख़ुश होकर हँसते हुए बची हुई ज़िन्दगी जी लूँगी
अगर न जी पाई तो ऊपर वाले,
मैंने तो कहा था तेरे हाथ से छीन लूँगी अपनी मुक्ति
तूने मेरी ना सुनी तो मैं भी तेरी ना सुनूँगी !!