दिलों पर ताले
दिलों पर ताले
मेरे आँसू भी मेरे नहीं होने वाले थे
जतन से आँखों ने जिन्हें सम्हाले थे।
नासूर बन कर बहने लगे
जख्म दिल नें पाले थे।
हो ना सका सुराग आसमाँ में
पत्थर कुछ तबीयत से उछाले थे।
डसने लगे थे सब के सब
साँप जो आस्तीन में पाले थे।
भरोसा करके लूट गया सरे राह
इल्म ना था लोग औकात दिखाने वाले थे।
उड़ते नहीं तो क्या करते
घर जो तूफान के हवाले थे।
कैसे चल पाता मंजिल की ओर
दिल जख्मी, पाँव में छाले थे
लौट जाता सचिन जरूर फिर वहीं
लेकिन बंद थे दरवाजे दिलों पर ताले थे।