चुप्पी तोड़ फिर बेटी बोली
चुप्पी तोड़ फिर बेटी बोली
काश हमारा एक बेटा भी होता,
धन्य भाग हो जाते,
बेटी कल जो विदा हो गई,
फिर हमको कौन संभाले,
काश हमारा एक बेटा भी होता,
घर में रौनक हो जाती,
दादा-दादी कहने वालों की,
मीठी बोली दिल को छू जाती।
काश हमारा एक बेटा भी होता,
लाठी बन सहारा देता,
जीवन की अंतिम यात्रा में,
मुखाग्नि देकर विदा कर देता।
चुप्पी तोड़ फिर बेटी बोली
पापा मैं बेटी हूँ तो क्या ?
बेटे का सारा फर्ज़ निभाऊंगी
चलकर कर्त्तव्य पथ पर।
सारी ज़िम्मेदारी पूरी करती जाऊंगी
तुम डरो नहीं पापा,
मैं बेटे जितनी ही काबिल और सक्षम हूँ,
नहीं रहूंगी अबला,
पैरों पर अपने खड़ी रहूँगी,
उम्र दराज़ जब हो जाओगे
अकेला कभी ना छोड़ूंगी
जो जो बेटा कर सकता है,
मैं भी बिल्कुल खरी उतरुंगी।
अंत समय जब आएगा,
निराश नहीं होने दूंगी,
हिम्मत इतनी है मुझमें,
मैं मुखाग्नि भी दे दूंगी,
डरो नहीं पापा तुम,
दीपक कुल का ना बुझ पायेगा,
मेरे बच्चों से भी तो यह वंश,
आगे चलता जाएगा,
ग़म ना करो पापा तुम,
बेटी बनकर भी मैं सब कर लूंगी,
ख़ून से अपने सींचा तुमने
फर्ज़ अदा सारे कर लूंगी।
जिस माटी से बेटे बने,
उसी से मेरा भी तो जन्म हुआ,
कमी कोई ना होने दूंगी,
जन्म तुमने जो मुझे दिया।