बुढ़ापा
बुढ़ापा
हर लम्हे को समेट लूँ
हर जर्रे को अपना बना लूँ
मुट्ठी भर फिसलन कुछ वक्त है,
जीना चाहूँ
बदलते तकदीर जैसे
बेहोशी की जाम पी लूँ।
थिरकती कदमों को
नटखटी शरारतों को
खुद में जी लूँ।
तेरी हर वो चाहत
को पूरा कर दूँ
चाहता हूँ तुझको हर वो
अनचाही खुशियां भी दे दूँ।
अगर तू कहे तो
तुझपे सारी दुनिया वार दूँ।
समय का तकाजा है
हर एक इंसान का अवधि है,
सुबह है तो शाम भी है
सूरज तू कितना भी इतराये
तुझे तो रोज ढलना ही है।