नदी ख़्वाब की है
नदी ख़्वाब की है
नदी ख्वाब की है नदी के किनारे
तुम्हे साथ ले कर यूं चलना पड़ेगा
उदासी हर इक शेर में क्यों भरी है
ग़ज़ल को मेरी अब बदलना पड़ेगा
बदन तो बदन के बहुत पास है अब
तेरी रूह को भी ये अहसास है अब?
अगर है मुहब्बत ये नज़दीकियाँ भी
तुझे प्यार में अब पिघलना पड़ेगा
अपनी ही ज़िद में ये दोनो अड़े हैं
अपने ही साँचे में उलझे पड़े हैं
तेरा दिल है पत्थर मेरा मोम है पर
किसी को किसी दिन पिघलना पड़ेगा
यही सोचता था जियूं या मारूँगा
ठोकर मिले पर मुहब्बत करूँगा
नही जानता था कि है खेल ऐसा
मुहब्बत में इक दिन संभलना पड़ेगा
जो भी पिलाया वही पी रहा हूँ
है हैरान दुनिया के मैं जी रहा हूँ
कहाँ तक सम्भालूं तुम्हारे ज़हर को
जो निगला है अब तक उगलना पड़ेगा
किसी चाँद के संग ये क्यों जागता है
फलक़ पे है जो उस को क्यों माँगता है
ये शायर का मन है कहाँ मानेगा ये
मुझे मेरे मन को ही छालना पड़ेगा
तेरी सोच ने मुझ को पैदा किया था
मगर जो दिया अक्स वो कैसा दिया था
हूँ किरदार लेकिन हैं काग़ज़ अधूरे
कहानी से बाहर निकलना पड़ेगा
सूरज की किरानो सी तेरी ये बाहें
मैं किस सिम्त देखूं अगर ये बुलायें
अभी ज़िंदगी में ही उलझा हुआ हूँ
अभी मौत को थोडा टलना पड़ेगा