हज़ारों ख़्वाहिशें
हज़ारों ख़्वाहिशें
हज़ारों ख़्वाहिशें लेकर जन्म ये हमने पाया है,
बड़ी जुर्रत से देखो हर कदम आगे बढ़ाया है।
जिन्हें अपना समझ के जिंदगी अपनी लुटा डाली
उसी के प्यार की हसरत में अश्क़ों को छुपाया है।
नजर मेरी हमेशा जिसे तलाशे यार में भटकी,
उसी की चाह की ख़ातिर ज़माने को भुलाया है।
तेरे वादे पे हमको था भरोसा किस कदर लेकिन,
भरोसा तोड़ कर तुने सितम ये कैसा ढाया है।
बचे दो चार कदमों का पटा ना फासला उनसे,
मगर खारो भरी राहों पे हमने खुद को चलाया है।
नहीं माना सदा टाला हमारी बात को उसने,
बिछडने के जिसके उल्फत से सदा गम को उठाया है।
चलो अच्छा हुआ मासुम खता से बच गये आख़िर,
गुनहगारी की राहों से कदम अपना बचाया है