फुदक चिरैया
फुदक चिरैया
कहाँ गई वो फुदकती चिरैया
मेरे आँगन की गौरैया कहाँ गयी
रोज़ सुबह चुगने जब आती
कलरव से मेरा मन बहलाती
देखूं मैं और देखे मैया
अब कहाँ गयीं?
चूजे उसके रोने लगते
जब घोसलें में वो चोंच घुसाती
दाने बिखेर कर करती ता ता थैया
रौनक गुम सी हो गई
जाने वो किस दुनिया में खो गयीं
अब काटे सूनापन ऐसे
जैसे काटे कोई ततैया
झाडू की सींके न खींचे
अब न कोई फुदके अँगना
सूनी पड़ी है मेरी मढ़ैया
कहाँ गई मेरी वो गोरैया