कुछ मुक्तक और शेर
कुछ मुक्तक और शेर
जो भी लिख रहा हूँ मैं, तुम्हारी ही बदौलत हैं
ये मेरे गीत,गजलें,नज्म सब तेरी ही दौलत हैं।
जमाना रोज गाता गुनगुनाता प्यार से जिनको
नहीं कुछ और वो यारा, हमारी ही मोहब्बत हैं।।
मेरे मन की जो तानें हैं जरा तू भी बजा के जा
हैं खालीपन मेरे आगँन जरा सा ही सजा के जा।
होंगे लाखों तेरे आशिक इस आलम के मजमे में
मगर मेरी मोहब्बत में कमी क्या थी बता के जा।।
बहाए आँसू बेहिसाब हमने तेरे हिज्र में
हुए हैं हाल भी बेहाल इक तेरी फिक्र में।
तू बदनामी मान इसे या शोहरत-ए-वफ़ा
नाम तेरा भी आता हैं मेरे हरेक जिक्र में।।
कुछ लोग करते हैं जमाने में मोहब्बत ऐसे
कोई कर रहा हो अमानत में ख़यानत जैसे।
यकीन बड़ा जरूरी हैं वफ़ा की तिज़ारत में
कभी टिकती नहीं बिना नींव इमारत जैसे।।