वो दिन थे सर्दियों की धूप के
वो दिन थे सर्दियों की धूप के
वो दिन थे सर्दियों की धूप के, जब
आँखें मूंदे पड़े रहते थे पहर पहर,
कोई उठाने आये तो पहले उसको,
आँखो ने के आगे बुलाया करते थे।
वो दिन थे सर्दियों की धूप के, जब,
खाली हो जाते थे सारे ऊनि कपड़े,
फटे होठों से मुस्कुराने के लिए,
हम अपनी हँसी को छुपाया करते थे।
वो दिन थे सर्दियों की धूप के, जब,
सब रंग खिले-खिले लगते थे बाग़ के,
लाख मना करने के बाद भी हम,
कुछ फूल चोरी से तोड़ लाया करते।