क्यूँ सताती हैं यादें सारी वो जिनको भूलना चाहते हैं
क्यूँ सताती हैं यादें सारी वो जिनको भूलना चाहते हैं
क्यूँ सताती हैं यादें सारी वो जिनको भूलना चाहते हैं
क्यूँ छूटती हैं वो बाहें जिनमें हम झूलना चाहते हैं ...
न नगर पता, न डगर पता, जिसपे चलना चाहते हैं
पहले बनते है अपने जो वो क्यूँ बिछड़ से जाते हैं …
रब्बा क्यूँ होता है ऐसा ....
कि दिल यह मोरा खोने लगे है
यह किसी का होने लगे है
जो बेगाने हैं, लगते अपने है
अपने हो गऐ पराये से
इस किनारे से उस किनारे तक
अँधेरे के साये छाये से
ख़ुद से लगता है डर जाने क्यूँ
आऐ हैं यह मोड़ जाने क्यूँ
जिससे बातें करने को दिल चाहता है
उसके सामने ही ख़ामोश है
अपने लफ़्ज़ों को होठों में थामे बैठे हैं
जाने किसका दोष है
रब्बा क्यूँ होता है ऐसा
कि दिल यह मोरा खोने लगे है
यह किसी का होने लगे है
किस की नज़र, किसी की दुआ
क्या ख़बर मुझे, कब है यह हुआ
वो बोले तो लगता ऐसे की
होठों से ओस की बूँदें गिरती हैं
आँखों में जैसे झील ख़ास हो
है तमन्ना जाने क्यूँ ऐसे की
बस वो ही इक मेरे पास हो
रब्बा क्यूँ होता है ऐसा
कि दिल यह मोरा खोने लगे है
यह किसी का होने लगे है