Haripal Singh Rawat (पथिक)
Tragedy
परवरिश की
कमी है...
फ़क्त,
वरना...
इंसाँ...इंसाँ से
नफ़रत करे,
ये... यूं तो,
मुनासिब नहीं ।
अगम्य राह
नूतन वत्सर
सहानुभूतिक जि...
भृंग उर
इश्क़-इस्बात
कौन पथिक?
'इश़्क सौ बार...
खुदकुशी
भाव और पथिक
मैं बहुत अकेली हो गयी हूँ कोई मेरे साथ नहीं है माँ। मैं बहुत अकेली हो गयी हूँ कोई मेरे साथ नहीं है माँ।
कभी दिल रोता है तो डराता हूं तो कभी चुप करवा देता हूं समझाकर। कभी दिल रोता है तो डराता हूं तो कभी चुप करवा देता हूं समझाकर।
जलाया है दीप ऐसा की नई रोशनी दिखाऐगा सुदर्शन, बचाना इसको भी जरूरी कहीं बुझा ने दे इसे जलाया है दीप ऐसा की नई रोशनी दिखाऐगा सुदर्शन, बचाना इसको भी जरूरी कहीं बु...
धोखे में रहेगा हर जन मानस वो जीरो से...हीरो बन जाएंगे। धोखे में रहेगा हर जन मानस वो जीरो से...हीरो बन जाएंगे।
कोई भागता रहा इसके पीछे किसी ने सारा ही किसी के नाम कर डाला। कोई भागता रहा इसके पीछे किसी ने सारा ही किसी के नाम कर डाला।
वो फुदक-फुदक गौरैया का,मेरे आंगन ,में आना। वो फुदक-फुदक गौरैया का,मेरे आंगन ,में आना।
वक्त के खेल अजीब होते हैंं जिंदगी समझ ही.... नहीं पाती। वक्त के खेल अजीब होते हैंं जिंदगी समझ ही.... नहीं पाती।
सूरज की प्रखर किरणें झुलसाती है तन को देखो, बेचैनी का आलम है छाया पसीने से लथपथ बदन। सूरज की प्रखर किरणें झुलसाती है तन को देखो, बेचैनी का आलम है छाया पसीने स...
जब से उसने जाना स्त्री -पुरूष होने का मर्म नजरबंद कर लिया खुद को। जब से उसने जाना स्त्री -पुरूष होने का मर्म नजरबंद कर लिया खुद को।
न सुनेगा कौन बदलेगा बालकां की तस्वीर रै। न सुनेगा कौन बदलेगा बालकां की तस्वीर रै।
अपने निज स्वार्थ के लिए...! उनकी पीड़ा कौन समझे...,?? ... अपने निज स्वार्थ के लिए...! उनकी पीड़ा कौन समझे...,?? ...
तुम्हारे हाथों में यह जो अंगूठी है, उसमें मेरी मां की बाजूबंद टूटी है। तुम्हारे हाथों में यह जो अंगूठी है, उसमें मेरी मां की बाजूबंद टूटी है।
मौसम आते जाते हैं पर ख़त्म नहीं होता तेरी यादों का मौसम। मौसम आते जाते हैं पर ख़त्म नहीं होता तेरी यादों का मौसम।
ईश्वर से हाथ जोड़ है बस यही प्रार्थना, हर घर में अब रहे सुख व शांति का समां, ईश्वर से हाथ जोड़ है बस यही प्रार्थना, हर घर में अब रहे सुख व शांति का समां,
अनजान ना बन इस खेल से पल में मृत्यु पल में निर्माण। अनजान ना बन इस खेल से पल में मृत्यु पल में निर्माण।
जीवन की इस यात्रा में, आया ज़िंदगी को समझना नहीं। जीवन की इस यात्रा में, आया ज़िंदगी को समझना नहीं।
कसाई-बाड़े के सामने क़ैद हैं पिंजरों में कई मुर्गे, मुर्गियांँ। कसाई-बाड़े के सामने क़ैद हैं पिंजरों में कई मुर्गे, मुर्गियांँ।
सच में अकल्पनीय होता है एक हॉरर फिल्म सा ही, सच में अकल्पनीय होता है एक हॉरर फिल्म सा ही,
तीस बरस पहले,आँगन में,बच्चों की, किलकारी थी छट्ठी, बरही, सालगिरह, मुन्डन की तैय्यारी। तीस बरस पहले,आँगन में,बच्चों की, किलकारी थी छट्ठी, बरही, सालगिरह, मुन्डन की ...
जाने क्यों सब छूट-सा रहा , क्यों ये जीवन रूठ-सा रहा। जाने क्यों सब छूट-सा रहा , क्यों ये जीवन रूठ-सा रहा।