पापा
पापा
जो खुद की खातिर कुछ नहीं करते,
सब बच्चों की खातिर करते हैं,
हर शाम को वक्त पर सोते नहीं,
वो नियत समय पर उठाते हैं।
अपना फ़ोन आदम के ज़माने का,
लेकिन बच्चो को स्मार्ट ही रखते हैं,
कल मुझे बाजार जाना पड़ा,
पापा का झोला उठा ले चला।
खाली था दिखने में छोटा सा,
वजन ज़माने भर का उसमें,
सब खेल समझ आया ऐ बाँसुरी वाले।
तू हर जगह नहीं आ सकता,
इस लिए तूने पापा को बनाया,
पापा कहते हैं कि बोलो इतना कि
सामने वाले को समझ आ जाए।
दान इतना करो कि,
मन का घमंड मिट जाए,
और कविता इतनी बड़ी ही हो,
कि सागर गगरी से छलक बस जाए।