उधार
उधार
मैंने जिंदगी से उधार लिए थे जो ख्वाब,
ब्याज आज भी उनका बाकी है,
भर चुका हूँ; किश्तों में अब तक !
माँ की गोद वाली नींद,
पापा के कंधो की सीढ़ियाँ,
भाई के शर्ट का कपड़ा,
बहन की शरारती चुटकियाँ !
और,
दोस्तों की गली,
अब बचा है मेरे पास;
साँस लेने वाला एक शरीर !
झूठ बोलने वाली दो आँखें,
कभी न थकने वाली दस उँगलियाँ,
और, और,
उधार !