समझकर मुझको अनजान
समझकर मुझको अनजान
समझकर मुझको अनजान
मिलने आये दो मेहमान ,
झुकाकर तीर सी नज़रे
चलाकर शातिर से दो बाण
समझने लगे मुझको नादान
बस दो बातें करके महान।
थोड़ा सा करके उपकार
बोलकर मीठी बातें चार
दिखाया सदाचार सा व्यवहार
फ़ैलाने को अपना व्यपार
लगाकर कंठ से ज़हर की फूक
सोचते है नहीं हुई कोई उनसे चूक।
फिर चले गए वो जाने कहा
मैं ढूंढता रहा उनको यहाँ वहां
सोचा शायद चले गए किसी और धाम
याद आ गया होगा उनको कोई काम
अब ना जाने किसको निशाना बनाएंगे
खुद उनसे कहने अब ना सामने आएंगे।
समझकर मुझको अनजान
मिलने आये दो मेहमान ,