मायने बदल जाते हैं...
मायने बदल जाते हैं...
जब मासूम ज़िन्दगी अपने हाथों में,
अपनी शक्ल में मुस्कुराती है
तो जीवन के मायने बदल जाते हैं...
बचपन नए सिरे से दौड़ लगाता है!
कहाँ थे कंकड़, पत्थर?
कहाँ थी काई?
वर्तमान में जीवंत हो जाते हैं॥
नज़रिये का पुनर्आंकलन
मासूम ज़िन्दगी से जुड़ जाते हैं...
जो हिदायतें अभिभावकों ने दी थी
वो अपनी जुबान पर मुखरित हो जाते हैं!
हमने नहीं मान कर क्या खोया
समझने लगते हैं
नज़र, टोने-टोटके पर विश्वास न होकर भी
विश्वास पनपने लगते हैं!
"उस वृक्ष पर डायन रहती है...."
पर ठहाके लगाते हम
अपनी मासूम ज़िन्दगी का हाथ पकड़ लेते हैं
"ज़रूरत क्या है वहाँ जाने की?"
माँ की सीख, पिता का झल्लाना
समय की नाजुकता समय की पाबंदी
सब सही नज़र आने लगते हैं।
पूरी ज़िन्दगी के मायने
पूरी तरह बदल जाते हैं