नापसंदगी
नापसंदगी
आम इंसान की
पसंदगी नापसंदगी
कोई मतलब मायने
कहीं नहीं रखता है ।
आम इंसान रोये
गाये चीखे चिल्लाये
चोट लगे न दर्द होये
भूख लगे या प्यास लगे
किसी को कुछ न फर्क पड़े।
ठंडी गर्मी या बरसात हो
हर मौसम में खुश रहता है।
मौसम चाहे कोई भी हो
हर मौसम में जी लेता है।
कूलर पंखे नहीं चाहिये
पेड़ की छांव में रह लेता है।
गद्दा रजाई भले न मिले
कथरी ओढकर सो जाता है।
सावन भादो की बरसात है
घास पूस के झोपड़े मे भी
खुशी खुशी रह लेता है।
रूखी सूखी रोटी खाकर
पेट भी अपना भर लेता है।
उसकी बात कोई नही सुनता
वो सबकी सुनकर सह लेता है।
गरीबी से कोई गरीब नही है
जाति से गरीब आंका जाता है
देश के शासन का ये पैमाना है।
छोटी जात मे जो पैदा होगा
वही करीब कहलाता है।
अमीर गरीब का ये पैमाना
जाति से आंका जाता है।
बोट के खातिर नेताओ ने
यह कानून बनाया है।
उच्च जाति में पैदा होने
वाला गरीब नहीं होता है।
बोट डालने के खातिर
सबको हक बराबर होता है।
जाति धर्म का भेद भाव
बोट डालने में नही होता है
बोट डालने की स्वातंत्रता
यहाँ सभी को मिलती है।
किसको बोट देना है।
दबंगो पर निर्भर होती है।
पसंद नापसंद की बात यहाँ
मुठ्ठी भर लोगो की होती है।