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Anita Agarwal

Others

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Anita Agarwal

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पर वो कहाँ?

पर वो कहाँ?

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कल शाम हुई बारिश
और मैं
बाहें पसारे बाहर आ गयी 
जैसे समेटना चाहती थी 
बारिश की हर बूँद 
तन भीगा
साथ मन भी भीगा,

याद आया बचपन,
जो जीवन कि दौड़ में ..
पिछड़ गया था 
जैसे कोई बहुत अपना
बिछड़ गया था 

याद आया,
वो सोंधे-सोंधे भुट्टे खाना
और खा के उसका डंडा 
दूर तक फेकना 
और देखना किसका ज्यादा दूर तक जाता है 
फिर
पानी में बनते घेरे को देखना
हँसना.. खिलखिलाना

आज बारिश भी है,
भुट्टा भी है
पर वो कहाँ?
जिसके साथ खिलखिलाऊँ?

याद आता है 
वो गरमागर्म चाय कि चुस्कियाँ
पानी की बूंदों से
चाय को बचाती,
हमारी वो गीली हथेलियाँ
जोर से हँसते हुए,
हमारा सिरों को टकराना
और चाय का छलक जाना

आज बारिश भी है
चाय भी है
पर वो कहाँ?
जिसके साथ सिर टकराऊँ?
वो कहाँ?
जिसके साथ भीगूँ?

सोचती रही मैं ये सब
भीगते हुए
मेरी आँखों से भी बारिश हुई
और मिल गयी दोनों बारिशे
मिलती रहीं
और मैं,
भीगती रही
तन से भी...
मन से भी


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