ज़ायका
ज़ायका
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चूल्हे चौके से निकली
थोड़ी सी कच्ची
थोड़ी सी पकी
थोड़ी सी जली,
थोड़ी सी भली
आटे से सनी,
झटपट बनी
मसालों का स्वाद लिए
उमंग मन में लिए
हींग के तड़के से महकी
खुशी खुशी में चहकी
एकदम गर्मागर्म
ताजी ताजी
उबलती उफनती भावनाएँ
पहुँची बाहर किसी तरह
नव वधू की तरह
शरमाते सकुचाते
डरते डरते परोसी
किसी तरह अपनी
चटपटी अटपटी सी कविता
प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
अब जायका तो
दूसरे ही बता पाएँगे
अंजू मोटवानी