हर जख़्म
हर जख़्म
हर टूटे हुए शीशे को फ़िर से
जुड़ने की दुआ नहीं मिलती है
वैसे हर ज़ख्म की फ़िर से
ठीक होने की दवा नहीं मिलती है
लोगों ने यूँ तो हर ज़ख्म की
कीमत के बाज़ार सज़ा रखें है,पर
मोहब्बत के किसी भी ज़ख्म की
दवा नहीं मिलती है
ये तो अपना अपना नसीब होता है,
हर कोई दुनिया में ख़ुदा नहीं होता है,
हर ज़ख्म को एक पवित्र जन्नत जैसी
खुशी नहीं मिलती है
तेरे ज़ख्म साखी बेहद अनमोल है,
इन्हें तू सँभाल कर रख,
हर ज़ख्म को इस दुनिया में अपनी
मंज़िल नहीं मिलती है
ये ज़ख्म भी बोलते बहुत है,
जज्बातों से खेलते बहुत है,
अपने ज़ख्मों से तू ज़रा संभल ले,
हर ज़ख्म को कभी अपनों की
मोहब्बत नहीं मिलती है
कभी आँसू से चुप होते है,
कभी दिल के लहू से चुप होते है,
हर ज़ख्म को कभी आँसू या
लहू की बारिश नहीं मिलती है
ये बंजर व वीरानी सी दुनिया है सारी,
हर शख्स को है यहां पैसे की बीमारी,
हर ज़ख्म को यहां रुपये व पैसे की
खरीदारी नहीं मिलती है
पत्थर रख ले तू अपने सीने पर,
हर ज़ख्म को कर दे तू दिल से बेघर,
क्योंकि पत्थरों से कभी चरागों की
रौशनी नहीं मिलती है
हर ज़ख्म की यहां बिना मतलब के
एक पैसे की भी दवा नहीं मिलती है