लाड़ली
लाड़ली
तू कितने प्यार से मुझे तकती थी
तू दौड़ भाग के न थकती थी
तू भूल जाती थी अपना आराम
हर घड़ी ध्यान मेरा रखती थी
कोई वैसे ही फिर सँवारे मुझे
मैं इतनी लाड़ली किसी की नहीं।
मैं कभी तुझसे लड़ भी लेती थी
कोई सी ज़िद्द पकड़ भी लेती थी
मेरे ख़्वाबों को पूरा करने को
तू पिता से झगड़ भी लेती थी
कोई फिर लाड़ में बिगाड़े मुझे
मैं इतनी लाड़ली किसी की नहीं।
मेरे आंसू तेरे लिए मोती
मैं जब भी रोती तो तू भी रोती
मेरी मुस्कान ज़िन्दगी थी तेरी
मेरी आँखों में थी तेरी ज्योति
कोई अरमानो से निहारे मुझे
मैं इतनी लाड़ली किसी की नहीं।
मैं जब भी दूर तुझसे जाती थी
तू दिन भर आंसू तब बहाती थी
और जब आती थी मैं वापिस घर
चूमती थी गले लगाती थी
प्यार के नामो से पुकारे मुझे
मैं इतनी लाड़ली किसी की नहीं।