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Ratna Pandey

Classics

5.0  

Ratna Pandey

Classics

कन्यादान

कन्यादान

3 mins
325


आंखों से नीर छलकता है,

अधरों से प्यार बरसता है

दिल में पीड़ा सी होती है,

जब कन्यादान की रस्म अदा होती है,


उन हाथों का क़र्ज़ कोई नहीं चुका पाया,

जिन हाथों ने कन्यादान किया,

तिनका तिनका जोड़कर जितना भी एकत्र किया,

स्वयं की चिंता छोड़कर,

सब कुछ ही अर्पण किया,


खाली झोली को उनकी,

सोने का कोई भी सिक्का,

कभी ना भर पाया,


ख़ुशियाँ देखकर बेटी की

मन उनका हर पल ही हर्षाया,

चिराग देकर अपने घर का,

ख़ुद अंधेरे में बस जाते हैं,


समुद्र सा विशाल हृदय है उनका,

जो इतना मुश्किल काम कर जाते हैं,


लाख ठोकरें खाकर भी वह दरवाजे पर दिखते हैं,

उतार कर अपने सर की पगड़ी पैरों पर रख देते हैं,

धैर्य ना जाने कितना उनकी रग रग में बसता है,

बेटी का घर ना उजड़े बस यही ख्याल दिलों में पलता है,


देखकर ऐसे हालात मन विचलित सा हो जाता,

जिसने ऐसे हालात बनाये मन उसे कोसने लग जाता,

कन्यादान ना किया हो जिसने,

वह क्या जाने पीर पराई,


पाल पोसकर बड़ा किया,

फिर होती अश्कों के साथ विदाई,

देना सीखो इन दिलदारों से,

लेने की प्रथा तो बरसों से है चली आई,

झुकना सीखो इन प्यारों से,

जिसने दुनिया की हर रीत निभाई,


सौभाग्यशाली हैं वह,

जिनके भाग्य में कन्यादान है आया,

उनसे अधिक सौभाग्यशाली हैं वह,

जिन्होंने कन्यादान का रत्न है पाया,


होता है उधार ये ऋण उन पर,

जो बेटी किसी की ले आते हैं,

और बहू बनाकर उस बेटी को घर अपने ले जाते हैं,

ऋणमुक्त वह तभी हो पाएंगे,


जब उस बेटी को,

बहू नहीं बेटी बनने का अधिकार मिले,

और माता पिता को उसके

बराबरी का हक़ और सम्मान मिले,

गुनहगार वह नहीं होते जो करते हैं कन्यादान,

फिर क्यों उन्हें हर बार ही सहना पड़ता है अपमान,


याद रखो स्तम्भ हैं वही,

जिनके दिल के टुकड़े से, घर परिवार चलते हैं,

उनके त्याग और बलिदान के बिना,

परिवार कहां बन सकते हैं,


तोड़ दोगे अगर स्तम्भों को,

तो घर कहाँ से बनाओगे,

याद रखो स्तम्भों के बिना तो तुम,

बेघर ही रह जाओगे।


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