मेरी खुशी
मेरी खुशी
पापा कहते बन इंजीनियर,
देश का ऊँचा नाम करो।
माँ कहती है बनो डॉक्टर,
नेकी का कुछ काम करो।
कैसे समझाऊँ मैं कि मेरे,
सपने भिन्न हैं दोनों से।
सेवक साहित्य का बन जाऊँ,
स्वर उभरे दिल के कोनों से।
मुझमें रची-बसी कविताएँ,
लिखना ही बस आता मुझको।
डॉक्टर, इंजीनियर बनना,
जरा नहीं भाता मुझको।
जबरन मुझ पर यों न डालो,
अपनी इच्छाओं के पहरे
कि मेरी सब खुशियाँ दब जाएँ,
कहीं गर्त में जा गहरे।
इच्छित लक्ष्य की ओर चला तो,
मंजिल जरूर पा जाऊँगा।
साथ आप जो दो मेरा,
मैं देश का मान बढ़ाउँगा।