"वो"
"वो"
वो देर ही सही आए तो सही...
मेरी मज़ार पर दियए जलाए तो सही
जीता रहा जब तक ज़िन्दगी
गर्दिश मे रही नूर के कारवाँ
यहाँ आज सजाए तो सही ....
मुफलिस रहा मजलिस मे मैं
हर शै से गमजदा
हर सू सोचा किया
दीदार किया
करता रहा यार का सजदा
काफ़िर समझ मेरा यकीं न किया
पर आज
वो लौट के
अश्क बहाए तो सही...
देर से ही सही वो आए तो सही...