मौन
मौन
मौन पढ़ लेते हो न
जब करती हूँ
ढ़ेरो बकबक
उसमें छुपे
एकाकी मन को
कभी तो बैठ पढ़
लो न अब
हाथों में हाथ न
हो तो भी
नहीं चाहिये
अधरों पे अधर
मन प्यासा है
बहुत मेरा
तुम एहसास
बन जाओ न अब
मौन पढ़ लेते हो न
जब करती हूँ
ढ़ेरो बकबक
उसमें छुपे
एकाकी मन को
कभी तो बैठ पढ़
लो न अब
हाथों में हाथ न
हो तो भी
नहीं चाहिये
अधरों पे अधर
मन प्यासा है
बहुत मेरा
तुम एहसास
बन जाओ न अब