Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Vinita Rahurikar

Inspirational

3  

Vinita Rahurikar

Inspirational

वर्जनाएँ

वर्जनाएँ

1 min
379


तोड़ दी हैं मैंने, हाँ मैंने

सारी वर्जनाएं जो अब तक

बौना बना रहीं थी मुझे

मेरे व्यक्तित्व की जड़ें काटकर।


उखाड़ दिया है वो फर्श

अपने पैरों के नीचे का

जो मिट्टी से दूर रख बंजर कर रहा था

उपजाऊ धरती

नहीं होने दे रहा था मुझे

सृजन के बीज बो नहीं पा रही थी।


गिरा दी हैं वो सारी दीवारें 

जो मेरे हिस्से की धूप और हवा

रोक रही थी, और अंधेरों में

दम तोड़ने लगा था, मेरे बीज का

नवांकुर।


तोड़ दी है वो छत भी मैंने आज

जो आकाश छूने से रोक रही थी

मेरे सृजन वृक्ष की टहनियों को

अब सारी वर्जनाओं से मुक्त

आज स्वयं 

असीमित आकाश हूँ मैं।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational