घाव
घाव
1 min
13.8K
तुमने जो छोड़े घाव दिलों पर,
सागर से ज़्यादा गहरे थे...
तुमने समझा निकल पड़े हम
लेकिन हम तो ठहरे थे।
झूठे वादे करके,
तुमने ऐसा जाल बनाया।
दु:शासन सब रह गये बाहर
मुझको केवल पकड़ फंसाया।
मानवता के चीर हरण को
देख रहे पर सब बहरे थे।
सभी तरफ हैवान,निगाहें
इकटक नहीं तक पाती हैं,
जिनको समझो राज सफर हम
निश्चित धोखा खाती हैं।
प्रणय-निवेदन करने में तब
भावुकता के पहरे थे।
आदर्शों की आड़ लगाकर
तुमने चालें कुटिल चली थी,
विश्वासों के अनुबन्धों में,
उन्मादों की भूल भली थी।
दुख पीड़ा की लहर में
सब भूले, हम भी लहरे थे।
अन्दाज़ तुम्हारे प्यार भरे थे,
बोली मिश्री शहद घुली थी,
वरदानों में श्राप मिले तब
जाकर मेरी आँख खुली थी।
ऊपर भोले भीतर भाले..
इस चेहरे में सौ चेहरे थे।