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Subodh Upadhyay

Drama

0.6  

Subodh Upadhyay

Drama

मित्र

मित्र

1 min
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जो स्वभाव सरल हो पढ़ने में,

हो विचलित बातें गढ़ने में,

शहद सा मृदुल भाषा में,

वही परम मित्र सा होता है।


जो ज्ञानी पर अभिमानी हो,

हर बात में आनाकानी हो,

झूठे बोल ले नश्तर बगल में,

वह मित्र विचित्र सा होता है।


है वही मित्र दिखे जिसमें,

छवि सुग्रीव-राम की है,

धन और सुख में मिले जो,

वो दोस्ती-यारी बस नाम की है।


ना कोई बड्डपन दोस्ती में,

न कोई ऊँचा-नीचा है,

कृष्ण-सुदामा से हो सखा,

वही मित्र सचित्र सा होता है।


दोस्ती में करुणा ममता है,

दोस्ती से बड़ा ना धन जग में,

ना छूट सके कोई इससे,

चन्दा-तारे संग-संग नभ में।।


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