बेसमझ आग
बेसमझ आग
आग तो आग होती है
जलाती है, तपाती है, पकाती है,
भड़कती है, लपकती है,
सुलगती है, भभकती है।
आग तो आग होती है।
उसे कहाँ पहचान है
कौन देश का भविष्य है,
कौन किसी की आँख का तारा,
कौन किसी कला का साधक।
उसे कहाँ समझ पाती है,
कि वो अँगीठी में है या किसी बिल्डिंग में,
माँस बकरे का भुना या इंसान का,
उसमें कूड़ा जला या पुस्तकें।
वो कहाँ जानती है,
किसकी गलती है,
किसने नियमों को तोड़ा,
किसने उल्लंघन पर आँखें मूंदी।
वो तो बस जलाना जानती है।
आग नियमों से खेलने से फैलती है,
भ्रष्टाचार से फैलती है।
लेकिन जलाती उनको है,
जो ये सब नहीं जानते।
काश, आग समझदार हो जाए।