मुलाकात - ए - बरसात
मुलाकात - ए - बरसात
बादलों की तेज़ गड़गड़ाहट भरी आवाज़
दे रही खुले आसमाँँ के नीचे आने का आगाज़
बारिश की टपकती चंद बूंदे
भला कौन रहेगा ऐसे में आंखे मूंदे
ऊपर से तपती देह को
छूकर जाने वाली हवाएं
इस तेज़ गर्मी की गर्म के लिए
जैसे मांगी थी किसी ने दुआएंं
रोक पायेगा ऐसे में भला कैसे कोई खुद को
भीग जाने दो आज जिस्म
कुछ ठंडक पहुँँच जाए रूह को
इत्तेफाक तो देखो बिन मौसम - ए - बारिश की
समझा नही हमने लगता है कोई साज़िश की
महबूब से मुलाकात करवाई भी कैसे
मिलते हो वर्षो बाद दो अनजान जैसे
उनके आंखे क्या पड़ी हम पर हम तो चूर हो गए
चाहा देखना हमने भी की पल भर में वो गुरूर हो गए
इन बेईमान आंखों को समझाये कैसे
हर पल शराफत भरी रहती है जैसे
बड़ी कसमकशिस थी उनके आंखों में
देखा जब भी पलटकर
खुद को पाया निगाहों में
फैला देते हाथ तो भर लेते बाहों में
समझे भी तो उसे हम अब क्या ?
चलना सीखा रहे हों जैसे राहो में,
बारिश की बूदों संग थे अश्क भी समाये
भला इतनी भीड़ में कौन समझ पाए
चाहा नही रोना भी खुद से उस पल
पर बहते अश्को को कहाँँ रोक पाए
चन्द लम्हो की मुलाकात और वर्षो की जुदाई
बात हुई नही देखते - देखते बस आंख भर आई
देखा हमने भी उनकी आंखों में कुछ इस कदर
मिलने के बर्षो बाद भी जैसे कर रहे हो खबर