“दिलासा”
“दिलासा”
कोई शिकवा नहीं,
मैं तो शुक्रगुज़ार हूँ
इस एहसान के लिए
थोड़ी देर को सही
कुछ दूर ही सही;
यह कम तो नहीं
तुम चली हो साथ!
तुम्हारे फ़ैसले में फिर
हित मेरा भी तो था
आत्मनिर्भरता आती कैसे
एक सहारे के रहते...
कितनी दूर जा पाता
कठिन जीवन-पथ पर
थामे तुम्हारा हाथ?!