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Sadhana Mishra samishra

Others

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Sadhana Mishra samishra

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नफ़ीस गज़ल

नफ़ीस गज़ल

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अपनी नादानियों के,

अपनी बदगुमानियों के

नज़ीर पेश करते हो,

इसे किस बिनाह पर

नफ़ीस गज़ल कहते हो ?


क्या भूखा ही रोटी की

गंध पहचानता है,

क्या लंगड़ा ही सहारा

बैसाखी की मांगता है ?


मंटो की फितरत के

मालिक हो,

नज़ीर प्रेमचंद की

पेश करते हो ?


फ़कीर का मन बसा

राज-सिंहासन के पायों में,

जाने फिर क्यों यह

ढ़ोंग करते हो ?


हो अगर बकवास भी

दिलफरेब किस्सा,

क्यों उसी कीचड़ में

धंसते हो ?


नाकामियों को अपने कुछ

और रंग दो,

क्यों उनकी हाज़री से

दम अपना बेदम करते हो ?


आती नहीं खुशबू

बनावटी गुलदस्तों से,

क्यों असली फूलों को

बदनाम करते हों ?


जो हो बस

वही दिखते नहीं,

हो असलियत में कुछ और

कुछ और दिखते हो ?


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