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Bharat Prasad Tripathi

Others

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Bharat Prasad Tripathi

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आत्महत्या की सदी

आत्महत्या की सदी

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मृत्यु का एहसास

मेरे हर दिन की हकीक़त है

इसमें मैं हर पल जीता हूँ

यह मुझे हर पल खाती है

नसों में लावा की तरह बहती

कोई आग है यह

जिसे हर साँस पीता हूँ

मुझसे कहिये न मौन

मैं काठ बन जाऊँगा

मुझसे कहिये न त्याग

मैं मिट्टी हो जाऊँगा

मगर मुझसे मत कहियेगा हँसो

मैं रो भी नहीं पाऊँगा

पेट फ़ैल गया है शरीर में

माया की तरह

भूख जैसी पीड़ा पूरे बदन से उठती है

हड्डी दर हड्डी में

मस्तक में इंच इंच

नाचती है भूख

आत्मा में गूँजता है मौत का अनहदपन

ह्रदय से धिक्कार उठती है अपने ही जीने पर

पानी अब पानी नहीं पेट का अन्न है

पत्थर मन भूला है

श्मशानी अतीत

भूला है हृदय दियों का बुझ जाना

देखा है  देखा है

गाँवों की अकाल मृत्यु

जीते जी टूटना और टूट कर बिखर जाना |


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