“क़िस्मत से हम अपनी जीत तो नहीं सकते”
“क़िस्मत से हम अपनी जीत तो नहीं सकते”
ताउम्र जिन्हें पाने की हसरत रही मेरे दिल में
हो न पाऐगी बिन उनके गुज़र, लगता है
जीवन की कड़ी धूप और बारिश में
जो देगा मुझे छाँव तू वो शज़र, लगता है
इस तूफ़ान में मेरी प्यार की कश्ती का जाने क्या होगा
दुश्मन हो गई है हर एक लहर, लगता है
जब भी हाथ उठाया दुआ में तुमको माँगा है
हर दुआ मेरी हो गई है बेअसर, लगता है
यूँ तो जी रहे हैं और ख़ुश भी हैं
फिर भी है कुछ तो कसर, लगता है
किस्मत से हम अपनी जीत तो नहीं सकते
फिर भी लड़ेंगे उम्र भर, लगता है