जीवन-मरुथल
जीवन-मरुथल
जिस पल तुमसे बिछड़ गया मैं
जीना तब ही छोड़ दिया था
साँसों के आने-जाने को
जीवन कहना ठीक नहीं है
मरुथल जैसा मेरा जीवन
रेत की तरह बिखरी साँसें
कभी कभी हंस पडूँ जो खुद पर
मधुबन कहना ठीक नहीं है।
जिस पल तुमसे बिछड़ गया मैं
जीना तब ही छोड़ दिया था
साँसों के आने-जाने को
जीवन कहना ठीक नहीं है
मरुथल जैसा मेरा जीवन
रेत की तरह बिखरी साँसें
कभी कभी हंस पडूँ जो खुद पर
मधुबन कहना ठीक नहीं है।