स्थान
स्थान
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कमल की मंद मुस्कान देखता हूँ , अमल की छंद थकान देखता हूँ ,
प्रभात किरण की लाली में बैठे, तेरे होठों पे स्थान देखता हूँ ।
स्वहृदय वीरान देखता हूँ ,प्रार्थना की नींव पे मकान देखता हूँ,
ज्ञात अज्ञात के खेल में बैठे, तेरे हृदय में स्थान देखता हूँ ।
प्रेम की आशा के सौपान देखता हूँ,तेरा हो कर अब तो निर्वाण देखता हूँ,
ख्यात ईश्वर के समीप बैठे, तेरे विचारों में स्थान देखता हूँ ।
तेरी नज़र में बढ़ता रूझान देखता हूँ,ख़ुद का दैविक निर्माण देखता हूँ,
हामि की प्रतीक्षा में बैठे, तेरे जीवन में स्थान देखता हूँ ।
मेरी रगों में नव प्राण देखता हूँ, तेरी साँसों में अपनी जान देखता हूँ,
सूर्योदय कि छाँव में बैठे, तेरे दिनों में स्थान देखता हूँ ।