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Sonam Kewat

Abstract

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Sonam Kewat

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फटी जेब

फटी जेब

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बड़ी मुश्किलों से मां को मनाया,

और उन्होंने मुझे अनुमति दी।

मैं निकल पड़ा शहर के ओर,

इस बार मां की ही सहमति थीं।

वर्ष भर कमाया दर बदर और,

सड़कों पर यहां वहां सोता था।

खाना कभी नसीब नहीं होता,

तो फिर मां की याद में रोता था।

फिर भी सुकून था कि कमाकर,

मैं अपनी मां को खुश कर दूंगा।

वह मुस्कुराएगी मुझे देखकर,

और मैं सारी तकलीफें ले लूंगा।

इस बार गांव जाऊंगा क्योंकि,

सेठ ने रखे कुछ पैसे मेरे हाथ में है।

सामान तो कुछ नहीं है पास पर,

घर जाने का उत्साह भी साथ में है।

घर पहुंचा तो मां दौड़ी देखकर,

बेचैनी भरे आंखों में आंसू थे।

उनकी कोशिश थीं छुपाने की,

आंसू भी खुद पे बेकाबू थें।

पैसे देने के लिए हाथ डाला,

तो पता चला फटी मेरी जेब थीं।

खुशी से नजर अंदाज करने लगीं,

पर मुस्कुराहट उनकी फरेब थीं।



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