कौन संसार चलाता है
कौन संसार चलाता है
रात के सीने पर चलती हैं कुदालें,
जब लहू दिन का निचोड़ा जाता है
पीस डालती हैं खुद को
पत्थर पर आँतें,
जब किसी मज़लूम को
तोड़ा जाता है,
रोती है रूह चीत्कार करके,
जब जायज़ अपना हक छोड़ा जाता है,
दिखाती है खून सने दाँत सियासत,
सर आवाम का फोड़ा जाता है,
और खुरच-खुरच कर निकाली जाती है
जाँ बेबस सी,
मरे हुए ज़मीरों को जब नाखूनों से
झिंझोड़ा जाता है,
मरती है इंसानियत सरे राह,
जब पेट भूख का मरोड़ा
जाता है,
कराहती है आत्मा तेरा नाम जब किसी
और संग जोड़ा जाता है,
जिंदा हो जाती है रूह तेरी रूह पर,
खींचकर जब मेरी खाल को
ओढ़ा जाता है,
तालियाँ पीटता हुजूम है, जंगल राज
का उसूल,
औ ऊपर बैठा वो जादूगर मज़े लेता है,
अट्टाहास लगाता है,
खून पीती जिव्हाएं सुड़प-सुड़प
सदियों से,
ये कौन नरभक्षी है जो चटखारे
लगाता है,
मेरा,तेरा, हरेक का कैसा सस्ता है ईमान,
कोई टुकडे फेंकता है और वो
सूली पर चढ़ जाता है,
एक सवाल है जलता सा,जो सलाखें बन,
कई दफ़े मेरे बेग़ैरत से सीने
में गढ़ जाता है,
किसी के पास उत्तर हो तो देना,
इंतज़ार में हूँ......