पलायन-एक व्यथा
पलायन-एक व्यथा
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जब उन्होने आना छोड़ दिया,
बंजर खेतों को छोड़ दिया।
मिजाज जो मौसम का बदला
फसल उगाना छोड़ दिया।
हर आंगन झाड़ियाँ उग आयी
जानवरों ने जंगल छोड़ दिया।
ऎसी चकाचौंध देखी शहरों में,
गांव के घर को छोड़ दिया।
जब से वो गांव से दूर गया,
तुलसी ने उगना छोड़ दिया।
हर त्यौहार की रंगत ने अब
पहाड में बसना छोड़ दिया।