मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है
मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है
हृदय का हृदय से संबंध, मैंने अभी तोड़ा नहीं है।
साथियों, मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है।
जिंदगी की खुली किताब है मेरे पास
ढाई-चार आंखरों का पूरा हिसाब है मेरे पास।
आनंद-दर्द, सुख-दुःख, मोह-विरक्ति
आशा-निराशा, सच-झूठ, द्वेष-भक्ति
मुस्कान-रूदन, करूणा-त्रास, दुर्बलता-शक्ति
सब कुछ ज्यों-का-त्यों है
कुछ भी मैंने निज मन से जोड़ा नहीं है
साथियों, मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है।
आज भी मेरे आंगन में खिल रही है हजारी
आज भी मेरे हिमालय में बर्फ गिर रही है भारी
मेरी हरकतें भी अभी नहीं हुई हैं विचित्र
चांद का प्रेम भी सदा से है पवित्र।
कलम भी लिख रही है सब कुछ सचित्र
क्योंकि तम का आंचल मैंने अभी ओढ़ा नहीं है।
साथियों, मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है।
गरीब का जीना, मुश्किल हो गया है
उसके हिस्से का सुख, कहीं दूर खो गया है
बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मचा रहे हाहाकार।
उत्पीड़न, शोषण करें, मानवता को तार-तार
राहे जिंदगी में कंटकों का आलम भी थोड़ा नहीं है।
साथियों, मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है।
झूठ भले ही बलशाली हो मगर जीत सच की होती है
एक दीप जला देने से, तम की दुनिया रोती है
मैं लिखूंगा, अनवरत लिखूंगा
कोई कुछ भी कहे, मगर खुदा का बंदा रहूंगा।
देह मेरी मिट जाये, मगर दिलों में जिंदा रहूंगा
क्योंकि चलती कलम ने रूख अपना मोड़ा नहीं है
साथियों, मैंने अभी लिखना छोड़ा नहीं है।