मज़ा ही कुछ और है
मज़ा ही कुछ और है
खुद से इश्क का मज़ा ही कुछ और है
ग़म मे जलने का मज़ा ही कुछ और है।
तड़पो बगैर किसी गुनाह के
पर इश्क के गुनाह का मज़ा ही कुछ और है।
ख़ुदा की इबादत करे हर कोई
पर महबूब की इबादत का मज़ा ही कुछ और है।
हर दुआ कबूल हो पुष्पांजली जरूरी तो नहीं
पर हुस्न के दिदार की दुआ का मज़ा ही कुछ और है।