रात सी मोहब्बत
रात सी मोहब्बत
हो रही है खाक सी मोहब्बत
राख सी दबी सी आग सी मोहब्बत।
हमने खुद को जलाकर देख लिया
बेहया बेगैरत बे आवाज़ सी मोहब्बत,
न मुझको रुलाती है न हंसती है
तन्हाई खामोश चुपचाप सी मोहब्बत।
सोचा कई बार निकल दू दिलो को दिल से
पर इसकी ये मिन्नतें दुआएं
आफताब सी मोहब्बत।
बस ही नहीं चलता इन यादों पर मेरा
हाँ ये गहराई परछाई ये रात सी मोब्बत।