रेड स्वेटर
रेड स्वेटर
तूने कुछ कहा नहीं,
मैंने कुछ सुना नहीं।
अधुरा पड़ा वो लाल स्वेटर,
मैंने अब तक बुना नहीं।
आधा ही नाप लिया था वो उस दिन,
बुनती भी कैसे वो स्वेटर तुम्हारा,
सिलाई भी टूटी,
वो ऊने भी छुटी,
वो छुटा था साथ जिस दिन तुम्हारा।
है आधा ही अब भी पड़ा मेरे पास,
उसी में तुम्ही को समझ लेती हूँ मैं,
जो यादें सताए तुम्हारी किसी दिन,
उसी में सिमट के सिसक लेती हूँ मैं।
दिखाउंगी तुमको मिलूंगी जो तुमसे,
बस सोंचू यही की ज़रा धूप निकले,
चमक भी वही हैं, दमक भी वही हैं,
है सीलन ज़रा सी, दोपहर जाने कब हो,
अलसाई आँखों के सपने भी रूठे,
वो कसमे भी झूठी, वो वादें भी टूटे,
मगर फिर भी हूँ,
पड़ी आँख मूंदे,
मेरे इस जहां में, सहर जाने कब हो।
गिरे होंगे तुम पर भी घड़ियों के छीटे,
बैरंगे से कुछ रंग तुम्हारे भी होंगे,
मैंने तब न देखा, है चश्मे अभी भी,
चहरे पे ऐनक तुम्हारे भी होंगे।
बहुत कुछ है कहना,
बहुत है शिकायत,
चलो अब हूँ रूकती,
कभी फिर लिखूंगी,
हु मैं भी अधूरी, अधूरी कहानी,
नहीं अब वो स्वेटर कभी फिर बुनुंगी।
मैंने तो माना था तुझको ही अपना,
पर तूने मुझे चुना नहीं।
अधुरा पड़ा वो लाल स्वेटर,
मैंने अब तक बुना नहीं।