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Parvej Kodopi

Abstract

5.0  

Parvej Kodopi

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आईना पहचानता है

आईना पहचानता है

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"नींदें गायब हैं उन आंखों से,

 जिन्हें, धोखे मिले हैं,

 हां, उनकी भी, दिए जिसने हैं।

 

हाथों की छुअन से, ये कंधा

 अब पहचानने लगा है

 गैर और हमदर्द में अंतर।


 फरेबी इस जहान में,

 हर कोई खुद को हरीशचंद्र मानता है।

 गर पूछो दिल से तो,

 उन्हें, आईना पहचानता है।


 बातें सच्ची, 

 अक्सर कड़वी लग ही जाती हैं। 

 झूठे बखान सुनना, 

 आदत बन ही जाती है। 

 

तुम समझते नहीं हो 

सामने हाथ जोड़ने वाले 

नहीं किया करते हमेशा पीछे बातें। 

तुम्हें हराने की बात कह 


जीताना, अपना ही जानता है, 

गौर से सोचो अगर तो, 

उन्हें भी, आईना पहचानता है।


ज़माने की बात क्या कहें, 

बुराई, अपनों को नहीं दिखती 

गैर नहीं देखते अच्छाई। 


कभी नहीं समझ पाएगी ये दुनिया, 

ताकत है वो तुम्हारी, 

जिसे अक्सर लोग कमजोरी समझ लेते हैं। 

 

छिपा लो जितना ज़माने से, 

हुनर बाहर निकलना जानता है, 

खुद के अंदर झांको तो, 

तुम्हें, आईना पहचानता है।


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