गुरु महिमा
गुरु महिमा
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गुरु बिन ज्ञान नहीं, गुरु ही जीवन के सहारे
गुरु बिन मान नहीं, शतशत बार प्रणाम हमारे।
उचित-अनुचित क्या ? हमको सिखलाते
मेहनत और लगन का रास्ता दिखलाते
शिक्षा, खेल, एकता और अनुशासन बताते
इंसानियत और नेकी का अध्याय पढाते।
गुरु ही अज्ञान के अंधकार को है मिटाते
सुविचारों से जीवनमार्ग को प्रशस्त बनाते
मातपिता सम गुरु के ऋण होते है अनेक
जातपात न छोटाबड़ा,उनके लिए सब एक।
यशस्वी हो सफल जीवन पाकर विद्यादान
आओ सब मिलकर करे नवयुग का निर्माण
सदा हो गुरु का सम्मान, गुरु मे बसते राम
गुरुरुपी ईश्वर को अर्पित शतशत बार प्रणाम।