नादानी की दौड़ में
नादानी की दौड़ में
नादानी की दौड़ में,
हम दौड़ चले किस ओर।
पता नहीं इस ओर चले हम,
न राह है न कोई मोड़।
फँस गयी है ये दुनिया,
किस भीड़-भाड़ की जंग में।
जहाँ है न अपना कोई भी,
हर प्रतिद्वंदी है उमंग में।
एक और है सुख का उजाला,
दूजी और है दुःख के बादल छाए।
कहीं अपने में ही मस्त सभी है,
कही मचा है हरदम मातम हाय।
वो राह पकड़ लो परिवर्तन की,
उस मोह माया को छोड़।
नादानी की दौड़ में हम,
दौड़ चले उस किस ओर।
कृष्ण -राम की बातें झूठी,
झूठा है अल्लाह नाम।
सिर्फ छल-कपट की जयकार है
धर्म हुआ बदनाम।
खून के इस लाल रंग में ,
रंग गया संसार।
वाह ! कंस और रावण की,
जीत हुई हर बार।
कब आएगी नई सुबह,
कब आएगी भोर।
नादानी की दौड़ में,
हम दौड़ चले किस ओर।
जलन ईर्ष्या हर घर में है,
भ्रष्ट है हर इंसान।
राह पकड़ ली लालच की जब,
क्या है मान-सम्मान।
दो कोड़ी पैसों के लिए,
सब मरने को तैयार।
हार-जीत की आग में,
टूट गया परिवार।
भाग चलो इस धर्म -जाति की,
जंजीरो को तोड़।
नादानी की दौड़ में,
हम दौड़ चले किस ओर।।