तुम गले नहीं मिलोगी क्या ।
तुम गले नहीं मिलोगी क्या ।
रिश्ता वो हमने ख़त्म किया ,
छुप छुप के फिर भी उसे देखा किया ,
नाराज़ भले ही मै हो गया ,
ये दिल ने फिर भी उसे याद किया ।
ये मोहब्बत की सच्चाई है ,
यहाँ टूटकर भी दिल जुड़ जाता है ,
नफरत तो बस बीमार कर जाता है ,
मोहब्बत ही आखिर इलाज कर जाता है ।
आँख भर आयी क्या ?
नफरत अब धुल गयी है क्या ?
इनकार तुम अब भी करोगी क्या ?
तुम गले नहीं मिलोगी क्या ?