क्या है आखिर सच ?
क्या है आखिर सच ?
'स्वप्न कवि की टूटती प्रतिमा का पुनर्निर्माण'
या खोया एक समय उसके साथ
या फिर पल-पल उस जकड़न से
निजात पाने की जिजीविषा।
और अपनी इस उधेड़बुन में
एक अनचाहे डर का सामना
जाने क्या था आखिर सच ?
मेरा पागलपन या यूँ ही
समय का बीतना
वो काँच की किरचों सी चुभन,
और पल-पल
उन भारी लपटों की जलन
आज भी उन अतीत की परछाइयों से
अछूता,असंबंधित रह पाने की अगन।
एक लहर में डूब जाने से पूर्व
बार-बार मन को चेतना
जाने क्या है आखिर सच ?
मेरा पागलपन
या यूँ ही समय का बीतना
आज जो 'तुम' मिल गए
तो मन में गूंजते हैं यही शब्द।
काश ! न होता वो मरणासन्न अतीत
उतावलापन पर जीवन निःशब्द
मेरे शर्म व संकोच में सिमटे नज़र
या धीमे-धीमे कदम का बढ़ना
जाने क्या है आखिर सच ?
मेरा पागलपन या यूँ ही
समय का बीतना।।