अधूरी ख्वाहिशें
अधूरी ख्वाहिशें
पुरानी डायरी के पन्नों पर
जो आज मेरी नज़र पड़ी,
अधूरी ,ख्वाहिशें ,अरमानों की
दासतान उसमें लिखी मिली।
बड़ी मुश्किल से सँभालकर
लोंगों की नज़रों से बचाकर
समय की जंग ना लग जाए
इसीलिए,बहुत ही सहेज कर
छुपा रखा है,उसे शब्दों में लपेटकर ।
कश्ती काग़ज़ की अभी तक
एक दो बनानी बाक़ी है ।
कुछ रूठों के होंठों पर
मुस्कान भी लानी बाक़ी है ।
रिश्तों की कड़वाहट धोनी हैं
कटी पतंगे लूटनी बाक़ी है।
जो शाम तेरा दीदार हुआ था
बीते लम्हों से,
वो शाम चुरानी बाक़ी है।
मैं जानता हूँ, सब तानें देंगे
उम्र की मेरी, दुहाई देंगे।
पर तय किया है ,हर हाल में
दासतान, अधूरी पूरी करनी है।
डायरी के बचे हुए पन्नों को
नई कहानी भेंट में देनी है।