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Abasaheb Mhaske

Others Tragedy

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Abasaheb Mhaske

Others Tragedy

काश ! तू समझ पाती...

काश ! तू समझ पाती...

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चुप रहने का नतीजा अभी भी भुगत रहा हूँ मैं ...

सही वक्त का केवल राह देखते तमाशा देखता रहा !

'तेरे हर गुनाह माफ़ किये, तेरी मनमानी सहता रहा...

याद किया न मैंने पुकारा तुझे दोबारा तू जाने के बाद !


खामोशी भी कभी- कभी बहुत कुछ बयां करती है ...

तो कभी- कभी अपनी दुश्मन भी बनती है खामोशी !

तू सिर्फ झगड़ती..ताने मारती रही, मैं संभलने की नाकाम कोशिश...

नतीजा क्या होना था ? साफ सामने मुझे स्पष्ट रूप से दिख रहा था !


अधिकार पाने के लिये पहले अपना फर्ज़ निभाना होता है...

समझने वालों को तो इशारा ही काफी है...ना समझी सबसे बड़ी ग़लती !

रिश्ते तो नाज़ुक, तकलादू होते हैं, माने तो भगवान ना माने तो कुछ नहीं

रिश्तों कि अहमियत तू क्या जाने, तू तो सिर्फ कांटा बनकर चूभती है !


मैं भला क्या करता? फटे आकाश को कब तक सिलाता ?

सात फेरों से नहीं, रिश्ता तो वृद्धिंगत होते हैं विश्वास से प्यार से.!..

काश ! तू समझ पाती यह सब और रिश्ता टूटने कि नौबत ना आती ...

मगर तुझे ना 'तेरी ग़लतियों का अहसास है ...ना .कोई पछतावा !


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